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मौलिक अधिकार कितने और कौन-कौन से हैं


हेलो..दोस्तो माय नियर एग्जाम में आपका स्वागत हैं। आज हम भारतीय नागरिकों के लिए कौन कौन से मौलिक अधिकार हैं इस बारे में विस्तार से जानकारी देने वाले वाले है। इस लेख में आपको और हमारे यानी भारतीयों के लिए संविधान में कौन-कौन से मौलिक अधिकार है इसके बारे जानेंगे। पिछले लेख में हम आपको मौलिक अधिकार क्या है? अर्थ, इतिहास एवं विशेषताएं के बारे में जानकारी उपलब्ध कराया था।

मौलिक अधिकार पहले 7 थे, अब 6 है।

  • मूल संविधान में 7 प्रकार मौलिक अधिकार थे, लेकिन 44 वें संविधान संशोधन, 1978 के द्वारा संपत्ति का अधिकार (अनु.31) को हटाया गया और  इसे संविधान के अनु. 300(a) में कानूनी अधिकार के रूप में रखा गया। इस प्रकार आज भारतीय संविधान में 6 मौलिक अधिकार का वर्णन हैं। आज हम इन 6 अधिकार की चर्चा करेंगे।

  • 1931 में कराची अधिवेशन (अध्यक्ष- सरदार वल्लभभाई पटेल) में कांग्रेस ने घोषणा पत्र में मूल अधिकारों की मांग की मौलिक अधिकारों का प्ररूप जवाहरलाल नेहरू ने बनाएं।

मौलिक अधिकार कितने और कौन कौन से है

  1. समता या समानता का अधिकार : अनुच्छेद 14 से 18
  2. स्वतंत्रता का अधिकार : अनुच्छेद 19 से 22
  3. शोषण के विरुद्ध अधिकार : अनुच्छेद 23 से 24
  4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार : अनुच्छेद 25 से 28
  5. संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार : अनुच्छेद 29 से 30
  6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार : अनुच्छेद 32


समता या समानता का अधिकार 

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 के मौलिक अधिकार अंतर्गत भारतीय नागरिकों को समानता का अधिकार प्राप्त है। 
  • विधि के समक्ष समानता : अनुच्छेद 14 के तहत भारत के सभी नागरिकों को विधि के समक्ष समता का अधिकार प्राप्त है अर्थात राज्य सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून का प्रावधान करेगा और उसी तरह समान रूप से उसे लागू भी करेगा। 
  • अनुच्छेद 14 में दो वाक्यांशों का उल्लेख किया गया है:-

a.विधि के समक्ष समानता 

b. विधियों का समान संरक्षण 

विधि के समक्ष समानता : विधि के समक्ष समानता वाक्यांश ब्रिटिश संविधान से लिया गया है जिसे डायसी ने 'विधि का शासन' कहां है। इसका अर्थ यह है कि कोई भी व्यक्ति विधि के ऊपर नहीं है तथा एक सी परिस्थिति वाले व्यक्तियों के साथ विधि द्वारा दिए जाने वाले अधिकारों तथा कर्तव्य के संबंध में समान व्यवहार किया जाएगा। 

विधियों का समान संरक्षण : विधियों का समान संरक्षण वाक्यांश अमेरिका के संविधान से लिया गया है जिसका तात्पर्य है कि समान परिस्थितियों वाले प्रत्येक व्यक्ति के साथ समान व्यवहार किया जाएगा। 

नोट : विधि के समक्ष समानता और विधियों का समान संरक्षण भारत में रहने वाले सभी व्यक्तियों को प्राप्त है चाहे वह भारतीय नागरिक हो या विदेशी हो। 

  • सामाजिक समानता : अनुच्छेद 15 के तहत किसी भी भारतीय नागरिक के साथ राज धर्म जाति लिंग, नस्ल,  जन्म-स्थान के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा। 

खंड-2 सार्वजनिक स्थानों पर भेदभाव का निषेध करता है।

खंड-3 राज्यों के स्थितियों और बालकों के लिए विशेष प्रावधान करने की शक्ति प्रदान करता है।

  • अवसर की समानता : अनुच्छेद 16  के तहत भारत के सभी नागरिकों को राज्य के अधीन किसी भी पद पर नियुक्ति के लिए उपलब्ध समान अवसर की प्राप्ति का अधिकार होगा।

  • अस्पृश्यता का अंत : अनुच्छेद 17 के तहत अस्पृश्यता का अंत कर दिया गया है यदि कोई इसे अपने जीवन में अपनाता है या ऐसी भावना प्रकट करता है तो उसे दंडनीय अपराध घोषित किया गया है। 
  • उपाधियों का अंत : अनुच्छेद 18 के तहत भारत का कोई भी नागरिक राष्ट्रपति की आज्ञा के बिना किसी अन्य देश से किसी भी प्रकार की उपाधि स्वीकार नहीं करेगा।

नोट : सेना या अकादमिक सामान के सिवाय राज्य अन्य किसी भी उपाधि का प्रावधान नहीं करेगा, क्योंकि उपाधियों को समाप्त कर दिया गया है।


स्वतंत्रता का अधिकार

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 से 22 मौलिक अधिकार के अंतर्गत भारतीयों के लिए स्वतंत्रता के अधिकार का प्रावधान करता है।
  • विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता : अनुच्छेद 19 सभी भारतीय नागरिकों को विविध प्रकार के विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है।

Q.मौलिक अधिकार के अंतर्गत स्वतंत्रता का अधिकार कौन-कौन से हैं?

Ans : भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार के अंतर्गत छह प्रकार के स्वतंत्रता का अधिकार का उल्लेख है ,जो इस प्रकार है।

अनुच्छेद 19 (a) : बोलने की स्वतंत्रता एवं प्रेस की स्वतंत्रता। सूचना पाने की स्वतंत्रता का अधिकार।

अनुच्छेद 19 (b) : शांति पूर्वक बिना हथियारों के कथित होने और सभा करने की स्वतंत्रता काा अधिकार।

अनुच्छेद 19 (c) : किसी भी प्रकार के संघ बनाने की स्वतंत्रता का अधिकार।

अनुच्छेद 19 (d) : देश के किसी भी भू-भाग में आवागमन की स्वतंत्रता का अधिकार।

अनुच्छेद 19 (f) : देश के किसी भी क्षेत्र में निवास करने की स्वतंत्रता का अधिकार।


  • अपराधों के लिए दोष सिद्धि के संबंध में संरक्षण : अनुच्छेद 20 भारतीय नागरिकों को अपराधों के लिए दोष सीधी के संबंध में संरक्षण प्रदान करता है।

जैसे : (i) किसी भी व्यक्ति को एक अपराध के लिए सिर्फ एक बार सजा मिलेगी।

(ii) अपराधी को केवल तत्कालीन कानूनी उपबंध के तहत सजा मिलेगी।

(iii) किसी भी नागरिक को स्वयं के विरुद्ध न्यायालय में गवाही देने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा।

  • प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण : अनुच्छेद 21 भारतीय नागरिकों के जीवन एवं शारीरिक स्वतंत्रता का संरक्षण करता है।
  • इसके तहत किसी भी नागरिक को कानून द्वारा निर्मित प्रक्रिया के अतिरिक्त उसके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।

नोट : अनुच्छेद 21(a) मूल अधिकार के अंतर्गत राज्य 6 से 14 वर्ष के बच्चों को निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराएगा। (86 वा संविधान संशोधन, 2002)

  • वंदीकरण के संरक्षण की स्वतंत्रता : अनुच्छेद 22 कुछ परिस्थितियों में भारतीय नागरिक की गिरफ्तारी और निरोध के संरक्षण प्रदान करता है।

जैसे : (i) यदि किसी नागरिक को मनमाने तरीके से हिरासत में लिया गया है तो उसे हिरासत में लेने का कारण बताना होगा।

(ii) हिरासत में लिए गए नागरिकों 24 घंटों के अंदर (आवागमन को छोड़कर) निश्चित दंडाधिकारी के समक्ष पेश किया जाएगा।

(iii) हिरासत में लिए गए व्यक्ति को अपने पसंद के अधिवक्ता से सलाह लेने की अधिकार होगा।


शोषण के विरुद्ध अधिकार

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23 और 24 मौलिक अधिकार के अंतर्गत भारतीय नागरिकों के शोषण के विरुद्ध अधिकार प्रदान करता है।
  • मानव क्रय विक्रय निषेध और बलात श्रम का निषेध : अनुच्छेद 23 में मानव के दूर व्यवहार और बलात श्रम का प्रतिशत किया गया है। ऐसा करना दंडनीय अपराध घोषित किया गया है।
  • बालकों के नियोजन निषेध : अनुच्छेद 24 में 14 वर्ष से कम उम्र वाले किसी बच्चे को कारखाने, खनन क्षेत्र या अन्य किसी प्रकार के जोखिम भरे कार्य पर नियुक्त करना दंडनीय अपराध घोषित किया गया है।


धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 मौलिक अधिकार के अंतर्गत धार्मिक स्वतंत्रता का प्रधान करता है।
  • धार्मिक आचरण एवं प्रचार की स्वतंत्रता : अनुच्छेद 25 के अंतर्गत भारतीय नागरिकों को किसी भी धर्म को मानने तथा उसका प्रचार प्रसार करने की स्वतंत्रता प्रदान की गई है।
  • धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता : अनुच्छेद 26 भारतीय नागरिकों को अपने धर्म के लिए संस्थाओं की स्थापना करने, संचालन करने तथा विधि सम्मत संपत्ति अर्जित करने, स्वामित्व रखने तथा नियंत्रण का अधिकार देता है।
  • अनुच्छेद 27 के अंतर्गत राज्य किसी भी नागरिक को, जिसकी आय, किसी भी धर्म या धार्मिक संप्रदाय की प्रगति में व्यय के लिए निश्चित कर दी गई है उसे ऐसे कर देने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा।
  • अनुच्छेद 28 के अंतर्गत राज्य विधि से पूर्ण रूप से संचालित किसी शिक्षण संस्थान में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी।इस प्रकार का कोई शिक्षण संस्थान अपने विद्यार्थियों को किसी भी धार्मिक अनुष्ठान में भाग लेने या किसी धर्म उपदेश को बलपूर्वक सुनने के लिए बाध्य नहीं करेगा।


संस्कृति एवं शिक्षा संबंधी अधिकार

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 मौलिक अधिकार के अंतर्गत भारतीय नागरिकों के लिए संस्कृति एवं शिक्षा संबंधी अधिकार का प्रधान करता है।
  • अल्पसंख्यकों के हितों का संरक्षण : अनुच्छेद 29 भारत के नागरिकों को जिनकी अपनी विशेष भाषा, लिपि या संस्कृति है, उसे बनाए रखने का उन्हें पूरा अधिकार देता है।किसी भी नागरिक को, भाषा, जाति,धर्म और संस्कृति के आधार पर किसी भी सरकारी शैक्षिक संस्था में प्रवेश से नहीं रोका जा सकेगा।
  • शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक वर्गों का अधिकार : अनुच्छेद 30 कोई भी अल्पसंख्यक वर्ग अपनी पसंद का शैक्षणिक संस्था चला सकता है और सरकार उसे अनुदान देने में किसी तरह की भेदभाव नहीं करेगी।

संवैधानिक उपचारों का अधिकार

  • डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की मान्यता थी कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 32 संविधान का सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो मौलिक अधिकार का एक अहम अंग माना जाता है इसके बिना संविधान अधूरा है। उनके अनुसार संवैधानिक उपचारों का अधिकार 'संविधान की आत्मा' एवं हृदय है।
  • अनुच्छेद 32 के अंतर्गत मौलिक अधिकारों को परिवर्तित करने के लिए समुचित करवाओ द्वारा उच्चतम न्यायालय में आवेदन करने का अधिकार प्रदान किया गया है।

मौलिक अधिकार (रीट) कितने और कौन कौन से हैं

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 द्वारा सर्वोच्च न्यायालय को 5 प्रकार के रीट निकालने की अधिकार प्रदान की गई है:-

  1. बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus)
  2. परमादेश (Mandamus)
  3. प्रतिषेध लेख (Prohibition)
  4. उत्प्रेषण (Centiorari)
  5. अधिकार पृच्छा लेख (Quo-warranto)


बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus) :-

यह बंदी प्रत्यक्षीकरण लेख (रीट) उस व्यक्ति के विरुद्ध जारी किया जाता है जो किसी अन्य व्यक्ति को निरोध में रखता है। उसको गिरफ्तार करने वाले व्यक्ति को यह आदेश दिया जाता है कि 24 घंटे के अंदर वह उस व्यक्ति को दंडाधिकारी के सामने उपस्थति करे। इस दौरान यात्रा के समय को शामिल नहीं की जाती है।

परमादेश (Mandamus) :-

यह प्रमादेश लेख कुछ पदाधिकारी को जारी किया जाता है, जो अपने सार्वजनिक कर्तव्य से विमुख हो गया है। जिससे वहां अपने कर्तव्य का पालन कर सकें।

प्रतिषेध लेख (Prohibition) :-

यह प्रतिषेध लेख सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय द्वारा अधीनस्थ न्यायालय को जारी किया जाता है। इस लेख के माध्यम से शीर्ष न्यायालय अधीनस्थ न्यायालय को उसके क्षेत्राधिकार के बाहर जाकर किसी भी मामले पर कार्रवाई करने से रोकता है। जिससे किसी नागरिक के साथ अन्याय ना हो।

उत्प्रेषण (Centiorari) :-

यह उत्प्रेषण लेख (रिट) सर्वोच्च एवं उच्च न्यायालय द्वारा अधीनस्थ न्यायालय को जारी किया जाता है। यह आदेश दिया जाता है कि किसी लंबित मुकदमे के न्याय निर्णय के लिए उसे वरिष्ठ न्यायालय को भेजा जाए

अधिकार पृच्छा लेख (Quo-warranto) :-

यह अधिकार लेख सर्वोच्च या उच्च न्यायालय द्वारा, उसे जारी किया जाता है, जो ऐसे पदाधिकारी के रूप में कार्य करने लगता है,जिस रूप में कार्य करने का उसे वैधानिक अधिकार प्राप्त नहीं होता है। न्यायालय इस लेख के माध्यम से उस व्यक्ति से पूछता है कि किस अधिकार से वह कार्य कर रहा है।

Video Credit : Praveen Sir
YouTube channel : EDU TERIA


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