सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियां एवं कार्य PDF |
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सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियां एवं कार्य
सर्वोच्च न्यायालय के गठन का वर्णन :-
- भारतीय संविधान के भाग 5 अध्याय 4 के तहत सर्वोच्च न्यायालय स्थापित किया गया है।संविधान के अनुच्छेद 124 से 147 के नियम में सर्वोच्च न्यायालय की संरचना और अधिकार क्षेत्र का वर्णन है।
- सर्वोच्च न्यायालय का गठन का प्रावधान की शक्ति अनुच्छेद 124 में दिया गया है। सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना, गठन, अधिकारिता शक्तियों के अंतरण से संबंधित नियम और कानून बनाने शक्ति भारतीय संसद को प्राप्त है।
- भारत की न्यायिक व्यवस्था इकहरी और एकीकृत है, जिसके सर्वोच्च पर भारत का सर्वोच्च न्यायालय है और भारत का अंतिम न्यायालय भी है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 के तहत भारत में सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना की गई है।
सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना :-
- सर्वोच्च न्यायालय स्थापना 28 जनवरी, 1950 ई. को भारत की राजधानी नई दिल्ली में तिलक रोड स्थित 22 एकड़ जमीन में एक वर्गाकार जमीन पर किया गया। जिसका डिजाइन केंद्रीय लोक निर्माण विभाग के प्रथम भारतीय अध्यक्ष मुख्य वास्तुकार गणेश भीकाजी देवलालीकर द्वारा इंडो ब्रिटिश स्थापत्य शैली किया गया था।
- भारत के एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने के दो दिन बाद भारत का उच्चतम न्यायालय अस्तित्व में आया। सर्वोच्च न्यायालय के उद्घाटन के बाद संसद भवन के चेंबर ऑफ प्रिंसेस (नरेंद्र मंडल) पहली बैठक की शुरुआत की गई थी। सर्वोच्च न्यायालय बार एसोसिएशन (SCBA) सर्वोच्च न्यायालय की बार (BAR) है।
सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की कुल संख्या :-
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या का वर्णन अनुच्छेद 124 (1) में किया गया है। वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की कुल न्यायाधीशों की संख्या 31 है, जिसमें एक मुख्य न्यायाधीश सहित 30 अन्य न्यायाधीश को मिलाकर सर्वोच्च न्यायालय का गठन किया गया है। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या को निश्चित करने का अधिकार भारतीय संसद को प्राप्त है।
नोट: सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश सहित कुल 8 न्यायाधीशों की व्यवस्था का गठन में की गई थी। बाद में काम के बढ़ते दबाव को देखते हुए भारतीय संसद ने 1956 ई. में सर्वोच्च न्यायालय अधिनियम में संशोधन करने वाले न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाकर 11 की गई। तत्पश्चात 1960 ई. यह संख्या पुणे 14 कर दी गई। 1978 ई. इसकी संख्या 18 और 1986 ई. में 26 हो गया। केंद्र सरकार ने 1 फरवरी, 2008 को सर्वोच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीशों के अतिरिक्त न्यायाधीशों की संख्या 25 से बढ़ाकर 30 करने का फैसला किया। जो अभी तक कार्य कर रहे है।
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की योग्यताएँ :-
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की योग्यता का वर्णन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 (3) में किया गया है। जिसके के लिए निम्नलिखित योग्यताएं आवश्यक हैं:
- वह भारत का नागरिक है।
- वह किसी उच्च न्यायालय या दो या दो से अधिक न्यायाधीशों में लगातार कम से कम 5 साल तक न्यायाधीश के रूप में कार्य कर रहे हैं। या किसी उच्च न्यायालय में लगातार 10 साल तक अधिवक्ता बने रहे। या राष्ट्रपति की दृष्टि में कानून का उच्च कोटि का ज्ञाता हो।
- सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश अवकाश प्राप्त करने के बाद भारत के किसी भी न्यायालय या किसी भी अधिकारी के सामने वकालत नहीं कर सकते हैं।
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की शपथ ग्रहण :-
- सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को पद एवं गोपनीयता की शपथ राष्ट्रपति दिलाता है।
- सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को भारत के राष्ट्रपति के समक्ष भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा और देश की एकता और अखंडता को अक्षुण्ण बनाए रखने की शपथ ग्रहण करनी होती है।
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति :
- सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है।
- सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश इस संदर्भ में राष्ट्रपति को परामर्श देने के पूर्व अनिवार्य रूप से चार वरिष्ठ न्यायाधीशों के समूह से परामर्श प्राप्त करते हैं और प्राप्त पर वर्ष के आधार पर राष्ट्रपति को परामर्श देते हैं।
- सबसे अधिक समय तक मुख्य न्यायाधीश के पद पर रहने वाले न्यायाधीश यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ (जिनका कार्यकाल 22 फरवरी, 1978 ई. से 11 जुलाई, 1985 ई. तक, 2696 दिन) थे।
- सबसे कम समय तक मुख्य न्यायाधीश के पद पर रहने वाले न्यायाधीश कमल नारायण सिंह (जिनका कार्यकाल 25 नवंबर, 1991 ई. से 12 दिसंबर, 1991 ई. तक, 17 दिन) थे।
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की आयु सीमा और महाभियोग :-
आयु सीमा:
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश बनने के लिए न्यूनतम आयु सीमा निर्धारित नहीं की गई है। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की कार्य अवधि उनके आयु के 65 वर्ष तक की होती है किंतु, इससे पूर्व व राष्ट्रपति को संबोधित कर अपना इस्तीफा दे दिया जाता है।
महाभियोग:
महाभियोग के लिए संसद के दोनों सदन अलग-अलग प्रस्ताव पारित कर एक ही सत्र में उपस्थित तथा मतदान करने वाले सदस्यों की कुल संख्या का 2/3 बहुमत होना आवश्यक है।
(i) कदाचार
(ii) शारीरिक व मानसिक असमर्थता के आधार पर संसद के प्रत्येक सदन द्वारा अनुच्छेद 124 (4) के तहत विशेष बहुमत प्रक्रिया द्वारा पारित 'महाभियोग प्रस्ताव ’के माध्यम से हटाया जा सकता है।
नोट: महाभियोग प्रक्रिया पहली बार 1991-93 ई. में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश वी. रामास्वामी के खिलाफ और 2011 ई. में कोलकाता उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश सौमित्र सेन के खिलाफ महाभियोग लाया गया, राज्यसभा में पारित होने के बाद लोकसभा में पारित होने के पहले ही उन्होंने त्यागपत्र दे दिया और सिक्किम उच्च न्यायालय के न्यायाधीश पीडी दिनाकरण ने महाभियोग की कार्रवाई शुरू होने से पहले त्यागपत्र दिया।
सर्वोच्च न्यायालय की न्यायाधीशों के वेतन और भत्ते :-
- सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन व भत्ते भारत के संचित निधि से दिए जाते हैं। इसका वर्णन अनुच्छेद 125 में किया गया है।
- वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों को 2,80,000 रूपए प्रतिमाह और अन्य न्यायाधीशों को 2,50,000 रुपए प्रतिमाह को प्राप्त होता है। इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों का वेतन ₹
- 100,000 रुपए प्रतिमाह और अन्य न्यायाधीशों को न्यायालय 90,000 रुपए प्रतिमाह थी।
- इसके अलावा सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को निशुल्क आवास, मनोरंजन के लिए कर्मचारी , कार और यात्रा भत्ता मिलता है।
सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियां एवं कार्य
सर्वोच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार :-
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मुकदमे को सुनने और फैसला करने की शक्ति एवं अधिकार को न्यायिक अधिकार क्षेत्र कहते हैं। सर्वोच्च न्यायालय के तीन प्रकार के क्षेत्र है:
- प्रारंभिक अथवा मूल अधिकार क्षेत्र
- अपील संबंधी अधिकार क्षेत्र
- परामर्शदात्री अधिकार क्षेत्र
प्रारंभिक अथवा मूल क्षेत्राधिकार :-
कुछ मुकदमे ऐसे हैं जो केवल सर्वोच्च न्यायालय के नया क्षेत्र में आते हैं इसका अभी पर आया है कि ऐसे मुकदमे केवल सर्वोच्च न्यायालय में ही प्रारंभ होते हैं अर्थात जिन्हें पहली बार केवल सर्वोच्च न्यायालय में ही दायर किया जाता है तथा वे किसी अन्य न्यायालय में दायर नहीं किए जा सकते हैं। मूल अधिकार में आने वाले मुकदमे इस प्रकार है:
(i)
a.ऐसे मुकदमे जिनमें एक और केंद्रीय सरकार तथा दूसरी ओर एक या एक से अधिक राज्य सरकारें हो।
b.ऐसे मुकदमे जिनमें एक ओर केंद्रीय सरकार के अतिरिक्त एक क्या एक से अधिक अन्य राज्य सरकारें हो और दूसरी ओर एक या एक से अधिक राज्य सरकारें हो।
c.ऐसे मुकदमे जिनमें दो या दो से अधिक राज्यों के बीच विवाद हो।
(ii) मौलिक अधिकार के संरक्षण तथा लागू करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय को विशेष अधिकार दिए गए हैं जिनके लिए उसे निर्देश अथवा आदेश देने का अधिकार है।
(iii) जनहित याचिका (PIL) भी सीधे सर्वोच्च न्यायालय में सुनी जा सकती है। यह कैसा अधिकार है जो संविधान में वर्णित नहीं है।
अपील संबंधित क्षेत्र अधिकार :-
किसी भी निचली अदालत द्वारा दिए गए निर्णय के विरुद्ध की गई अपील को किसी उच्च न्यायालय द्वारा सुनने की शक्ति को को अपील संबंधित ने अधिकार कहा जाता है। सर्वोच्च न्यायालय उच्च न्यायालय के निर्णय के विरूद्ध अपील सुन सकता है अतः सर्वोच्च न्यायालय में की गई अपील अंतिम अपील होती है। यह अपील दीवानी, फौजदारी तथा संवैधानिक मामलों से बन तो सकती हैं।
(i) दीवानी मामले : अनुच्छेद 133
दीवानी मामले के अंतर्गत संपत्ति विवाद, धन समझौते या किसी सेवा संबंधी झगड़ों के मामले आते हैं। ऐसे मामले में उच्च न्यायालय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है। पहले ऐसे दीवानी मामलों की वित्तीय सीमा केवल 20,000 रुपए तक थी परंतु 1972 ई. में किए गए संविधान के तीसरे संशोधन के अनुसार आप सर्वोच्च न्यायालय में की जाने वाली दीवानी अपील के लिए कोई न्यूनतम राशि निर्धारित नहीं है।
(ii) फौजदारी मामले : अनुच्छेद 134
कई परिस्थितियों में फौजदारी मामले में उच्च न्यायालय के निर्णय के विरूद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है:
यदि को उच्च न्यायालय निचली अदालत द्वारा दोष मुक्त घोषित किए गए व्यक्ति को मृत्युदंड सुना दे तो ऐसे व्यक्ति को इस निर्णय के विरूद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने का अधिकार है ।
यदि उच्च न्यायालय किसी ने इसलिए अदालत में किसी मुकदमे को अपने यहां मंगा ले और उस व्यक्ति को दोषी करार देते हुए मृत्युदंड सुना दे तो ऐसे मामले में भी सुप्रीम कोर्ट में अपील की जा सकती है।
(iii) संवैधानिक मामले : अनुच्छेद 132
संवैधानिक मामले ना तो दीवाने झगड़े होते और ना ही फौजदारी अपराध। ऐसा मुकदमा है जिनके कारण संविधान की भिन्न भिन्न प्रकार से व्याख्या करना होता है। विशेष तौर पर मौलिक अधिकारों से संबंधित व्याख्या अथवा अर्थ निकालना। ऐसे मामलों की सुनवाई सर्वोच्च न्यायालय में केवल तभी हो सकती है यदि उच्च न्यायालय यह प्रमाणित करें कि मामला संवैधानिक सवालों से संबंधित है।
परामर्शदात्री अधिकारक्षेत्र :-
परामर्शदात्री अधिकार का अर्थ यह है कि सर्वोच्च न्यायालय को प्रमाण देने का अधिकार है यदि उस से परामर्श मांगा जाए । परामर्श संबंधी अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत राष्ट्रपति किसी भी कानून संबंधित अथवा लोक महत्व के परामर्श पर सर्वोच्च न्यायालय से प्रमाण मांग सकता है परंतु सर्वोच्च न्यायालय परामर्श देने के लिए बाध्य नहीं है।
आज तक जब भी सर्वोच्च न्यायालय ने कोई प्रमाण दिया है राष्ट्रपति ने उसे सादर स्वीकार किया है। अयोध्या में जिस स्थान पर बाबरी मस्जिद बनाई गई थी, उस स्थान पर पहले मंदिर था या नहीं,जब इस पर सर्वोच्च न्यायालय की राय मांगी गई तो उसने अपनी राय देने से इनकार कर दिया था।
सर्वोच्च न्यायालय की अन्य कार्य :-
- मौलिक अधिकारों का संरक्षण
- न्यायिक पुनरावलोकन
- जनहित याचिका (PIL)
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1 Comments
क्या एक तरफा डिक्री प्राप्त करने वाला शासकीय सार्वजनिक धार्मिक स्थान का स्वामी घोषित हो सकता है? डिक्री लेने वाला मध्यप्रदेश शासन को प्रतवादी नहीं बनाता है ओर शासकीय माफी भूमि प्राप्ति का आवेदन प्रस्तुत नहीं करते हुए आपसी सांठगांठ कर एक तरफा डिक्री लेकर भूमि का स्वामी हो जाता है ओर प्रतिवादी अपील करने में असमर्थ हो जाता है . ओर वादी खसरों में अपना तथा परिवार के सदस्यों को स्वामी के रूप में दर्ज करा कर शासकीय माफी भूमि का स्वामी बनकर बेच सकता है? जबकि समस्त माफी भूमि समाप्त होकर शासनाधीन हो चुकी है ओर ऐसी भूमि का प्रबंधक के रूप में जिला कलेक्टर प्रबंधक के रूप में दर्ज ह़ोने का विधान बन चुका था. ऐसी स्थिति में सर्वोच्च न्यायलय का क्या कानून है तथा रूल्स है जानना चाहता हूँ.
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