प्रिय पाठकों! माय नियर एग्जाम डॉट इन में आपका स्वागत है। आज हम इस लेख में हरित क्रांति क्या है? हरित क्रांति के जनक कौन थे? इन प्रश्नों पर चर्चा करने वाले हैं। 

इस लेख में क्या-क्या पढ़ेंगे!

हरित क्रांति क्या है?

हरित क्रांति के जनक कौन थे?

भारत में हरित क्रांति के चरण

हरित क्रांति के लाभ

हरित क्रांति के हानि/नुकसान

हरित क्रांति की विशेषताएं क्या है?

दूसरी हरित क्रांति की मुख्य बिंदु


हरित क्रांति (Green Revolution) क्या है?

आज के समय में भारत की सवा सौ करोड़ जनसंख्या का भोजन भारतीय कृषि पर निर्भर है। देश आजादी के बाद लगातार बढ़ती आबादी को को भोजन उपलब्ध कराना देश के लिए एक बड़ी समस्या थी। इस समस्या को हल करने के लिए भारतीय कृषि वैज्ञानिकों ने कम भूमि में उच्च पैदावार वाले उन्नत किस्म के फसलों का विकास किया। हरित क्रांति मुख्य रूप से गेहूं की फसल से संबंधित है। इस तरह देखते-देखते भारत में कृषि की अन्य फसलों की पैदावार में लगातार बढ़ोतरी हुई। जिसे हरित क्रांति का नाम दिया गया।

हरित क्रांति उच्च गुणवत्ता वाले बीज रसायनिक उर्वरक व गहरी सिंचाई आधारित कृषि उत्पादन की एक नवीन प्रक्रिया थी। इस क्रांति को 'अधिक उपज देने वाली किस्मों का कार्यक्रम' (High Yielding Varieties Programme - HYVP) के नाम से भी जाना जाता है। हरित क्रांति का दूसरा नाम 'सदाबहार क्रांति' भी है।

हरित क्रांति शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम अमेरिका के डॉक्टर विलियम गॉड ने किया था हरित क्रांति कार्यक्रम के तहत रॉकफेलर एवं फोर्ड फाउंडेशन के तत्वधान में बोने फसल वाली गेहूं की एक ऐसी किस्म का विकास किया गया, जो -

  • पारंपरिक किस्मत से अधिक उपज वाली थी;
  • मौसम परिवर्तन से कम प्रभावित होती थी;
  • शीघ्र तैयार हो जाती थी;
  • उर्वरकों के साथ अनुकूलन प्रक्रिया दर्शाती थी।

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हरित क्रांति के जनक कौन थे?

#हरित क्रांति के सकारात्मक प्रभाव के कारण विश्व हरित क्रांति के जनक डॉ. नॉर्मन बोरलॉग (अमेरिकी कृषि विज्ञानी) को कहा जाता है। रोग से मुक्त उच्च उत्पादकता वाले गेहूं की किस्मों के विकास के लिए इन्हें वर्ष 1970 में विश्व का शांति का 'नोबेल पुरस्कार' प्रदान किया गया तथा इन्हें भारत का नागरिक पुरस्कार 'पद्म विभूषण' से भी सम्मानित किया गया।

#भारतीय हरित क्रांति के जनक के रूप में एम.एस. स्वामीनाथन (जेनेटिक वैज्ञानिक) को जाना जाता है। इन्होंने सन 1966 ईस्वी में गेहूं की एक संकर बीज विकसित किए जो मैक्स को के बीजों को पंजाब के घरेलू किस्म के बीजों के साथ मिश्रण से तैयार किए थे। 

एम.एस. स्वामीनाथन को भारत सरकार के पदक

पदम श्री - 1967 ई.

पदम भूषण - 1972 ई.

पदम विभूषण - 1989 ई. 


भारत में हरित क्रांति के चरण 

पहला चरण : भारत में हरित क्रांति का पहला चरण शुरुआत पंजाब हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश एवं राजस्थान के गंगानगर आदि क्षेत्रों में व्यापक रूप से हुआ। हरित क्रांति के पहला चरण 1966-67 से 1980-81 तक माना जाता है। जिसमे संकर जाति के बीजों का विकाश हुआ।

दूसरा चरण : हरित क्रांति की दूसरा चरण चरण 1980-81 से 1966-97 तक माना जाता है। जिसमें नवीन तकनीकों एवं भारी मशीनों पर विशेष जोर दिया गया।


हरित क्रांति के लाभ

  • गहन कृषि उत्पादकता प्रणाली का विकास हुआ,
  • खदानों के उत्पादन मित्र वृद्धि तथा खदान क्षेत्रों में विशेष प्रगति हुई,
  • जीवन निर्वाह कृषि स्वरूप से व्यापारिक तथा बाजारों कृषि का विकास हुआ,
  • नई प्रौद्योगिकी के उपयोग से कृषि क्षेत्र में रोजगार के अवसरों में वृद्धि हुई,
  • कृषि एवं उद्योगों में आपसी संबंधों में मजबूती आई,
  • ग्रामीण समृद्धि में वृद्धि हुई तथा प्रति व्यक्ति आय एवं राष्ट्रीय आय में वृद्धि हुई।


हरित क्रांति के हानि/नुकसान

  • आय की असमानता में वृद्धि हुई क्योंकि बड़े किसान और धनी हो गए,
  • हरित क्रांति का प्रभाव केवल कुछ ही खदान फसलों जैसे - गेहूं, चावल, मक्का, बाजरा तक ही सीमित रहा,
  • नई मशीनों के प्रयोग से परंपरागत कृषि औजार निर्माता जैसे बढ़ाई लोहार आदि के समक्ष बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न हुई, जिसके कारण आत्मनिर्भर ग्रामीण अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई और लोगों शहरों की तरफ पलायन करने को मजबूर हो गए,
  • रसायनिक उर्वरकों के अधिक प्रयोग से जल,वायु एवं मृदा प्रदूषण में वृद्धि हुई तथा मृदा उर्वरता का नुकसान अधिक हुआ।


हरित क्रांति की विशेषताएं क्या हैं।

अधिक उपज देने वाली बीजों का प्रयोग - कम कृषि जोत में अधिक से अधिक फसल का उत्पादन होने लगा, जिससे बढ़ती आबादी को कम भूमि भोजन उपलब्ध कराना आसान हुआ।

रसायनिक उर्वरकों का प्रयोग - उर्वरकों के प्रयोग से फसल उत्पादन में वृद्धि हुई।

कीटनाशक दवाओं का उपयोग - कीटनाशक दवाओं के प्रयोग से फसल पर आने वाली कीड़े को नष्ट कर फसल का अच्छी विकाश हुआ।

कृषि यंत्रीकरण का विकास - आधुनिक  समय में कृषि यंत्र नई नई तकनीकों का विकास हो जाने से पैदवार को सीमित समय उत्पादन करना आसान हो गया है।

सिंचाई परियोजनाओं का विकास - सिंचाई परियोजनाओं के विकास से लघु एवं मध्यम किसान भी सिंचाई का पूरा पूरा लाभ ले पा रहे हैं।

कृषि समर्थन मूल्य का निर्धारण - कृषि समर्थन मूल्य निर्धारण से किसानों की आय में वृद्धि की एक नई आशा का विकास हुआ है।

कृषि एवं ऋण के सुविधा में विस्तार - भारतीय बैंकों द्वारा किसान को फसल उपजाने के लिए बैंकों द्वारा ऋण की सुविधा प्रदान की जा रही है। साथ ही साथ सरकार द्वारा कृषि योजनाएं भी लागू की जा रही है।


भारत में दूसरी हरित क्रांति की विशेष बिंदु

  • 1990 के दशक के मध्य में द्वितीय हरित क्रांति की शुरुआत हुआ। इस क्रांति को 'सदाबहार क्रांति' भी कहा गया।
  • प्रथम हरित क्रांति से भिन्न दूसरी हरित क्रांति में सभी फसलों एवं कृषि उत्पादों को शामिल किया जाना सुनिश्चित गया।
  • दूसरी हरित क्रांति में धारणीय कृषि पद्धति के साथ जैविक उर्वरकों को एवं कितना स्कोर का प्रयोग पर बल दिया गया।
  • द्वितीय हरित क्रांति फसल की विविधता, प्रमुख फसल का प्रबंधन, पौधे एवं मृदा का संरक्षण आदि विषयों को भी शामिल किया गया।
  • इस हरित क्रांति के अंतर्गत कृषि के सतत विकास के लिए आधारभूत संरचना तथा संस्थागत ढांचे को मजबूत करना जैसे- शीत भंडारों की व्यवस्था सड़क योजनाएं, कृषि उत्पादों की सुविधा, दूरसंचार का विकास, मूल्य परिवर्तन के लिए कृषि प्रसंस्करण पर बल देना आदि को शामिल किया गया।
  • दूसरी हरित क्रांति में नए सरकारी समितियों का गठन कर छोटे एवं सीमांत कृषकों को भी उन्नत बीज उर्वरक अत्याधुनिक मशीनें आदि के क्रय हेतु कम ब्याज पर ऋण उपलब्ध कराया जाना सुनिश्चित किया गया।