प्रिय पाठकों! माय नियर एग्जाम डॉट इन में आपका स्वागत है। प्रतिदिन की तरह आज इस लेख के माध्यम से हम आपके लिए एक नई जानकारी कोशिका (Cell) के बारे में लेकर आए है जिसके अंतर्गत कोशिका किसे कहते हैं | कोशिका की खोज का इतिहास | कोशिका के कितने प्रकार होते हैं | कोशिका के कार्य | कोशिका का विभाजन जैसे महत्वपूर्ण टॉपिक को शामिल किया है जो निम्नलिखित इस प्रकार है -:
आसान भाषा में कोशिका : आप में से लगभग सभी कोशिका का नाम सुने होंगे अगर नहीं तो चलिए आसान भाषा में समझते हैं जिस तरह भवन निर्माण में एकसमान ईंटों का प्रयोग होता है परन्तु उनकी आकृति, डिशाइन एवं साइज़ अलग-अलग होते हैं। इसी प्रकार सजीव जगत के जीव एक-दूसरे से भिन्न होते हुए भी कोशिकाओं के बने होते हैं। निर्जीव ईंट की अपेक्षा सजीवों की कोशिकाओं की संरचना अधिक जटिल होती है।
कोशिका किसे कहते हैं?
कोशिका का चित्र |
- संसार के सभी जीव छोटे अमीबा से लेकर बड़ा हाथी तक छोटी-छोटी कोशिकाओं से मिलकर ही बनते हैं।
- कोशिका के अध्ययन के विज्ञान को कोशिका विज्ञान (Cytology) कहते है।
- सबसे लंबी कोशिका 'तंत्रिका तंत्र' की कोशिका है जबकि सबसे छोटी कोशिका जीवाणु 'Mycoplasm Gallisepticuma' है जिसका आकार 0.1 से 0.5 माइक्रोमीटर होता है जबकि सबसे बड़ी कोशिका 'शुतुरमुर्ग के अंडे' (Ostrich egg) की होती है जिसका आकार 170×130 माइक्रोमीटर होता है।
कोशिका की खोज का इतिहास
• 19 वीं सदी का अंतिम चौथाई काल कोशिका विज्ञान का 'क्लासिकल काल' कहा जाता है क्योंकि इसी समय कोशिका विज्ञान के क्षेत्र में बहुत ही महत्वपूर्ण खोज हुई।
• सन् 1665 ई. में कोशिका की खोज रॉबर्ट हुक ने की हुक ने कॉर्क के स्लाइस का सामान्य आवर्धक यंत्र की सहायता से अध्ययन किया। कॉर्क पेड़ की छाल का एक भाग है। उन्होंने कॉर्क की पतली स्लाइस ली और उसका सूक्ष्मदर्शी की सहायता से अध्ययन किया। उन्होंने कॉर्क की स्लाइस में अनेक कोष्ठयुक्त अथवा विभाजित बक्से देखे। ये बक्से मधुमक्खी के छत्ते के समान दिखाई दिए। उन्होंने यह भी देखा कि एक कोष्ठ अथवा बाॅक्स दूसरे से एक दीवार अथवा विभाजन पट्टी द्वारा अलग है। हुक ने प्रत्येक कोष्ठ को ‘कोशिका’ का नाम दिया तथा अपनी पुस्तक 'माइक्रोग्राफिया' में इसे कोशिका का नाम दिया
• कोशिका जीवन की सबसे छोटी क्रियात्मक एवं संरचनात्मक इकाई है। एंटोंवान लिवेनहाक ने पहली बार कोशिका का वर्णन किया था।
• कोशिका सिद्धांत का प्रतिपादन 1838-39 ई. में वनस्पति शास्त्री मैथियश स्लाइडन और जंतु वैज्ञानिक थियोडोर स्वान ने किया। लेकिन इनका कोशिका सिद्धांत यह बताने में और सफल रहा कि नई कोशिकाओं का निर्माण कैसे होता है पहली बार रडोल्फ बिर्चो ने सन् 1855 ई. में यह स्पष्ट किया कि कोशिका विभाजित होती है और नई कोशिकाओं का निर्माण पूर्व स्थित कोशिकाओं के विभाजन से होता है।
कोशिका कितने प्रकार के होते हैं | Types of Cell
कोशिका दो प्रकार के होते हैं जो निम्नलिखित है:−
- प्रोकैरियोटिक (Procaryotic)
- यूकैरियोटिक (Euocaryotic)
प्रोकैरियोटिक (Procaryotic)
यूकैरियोटिक (Euocaryotic)
प्रोकैरियोटिक तथा यूकैरियोटिक कोशिका में अंतर
प्रोकैरियोटिक कोशिका | यूकैरियोटिक कोशिका |
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• प्रोकैरियोटिक कोशिका में अर्ध विकसित होती है। • प्रोकैरियोटिक कोशिका वास्तविक केंद्रक नहीं होता है। • राइबोसोम 70S अवसाद गुणांक के होत है। • केंद्रक झिल्ली, गोल्जीकाय, लाइसोसोम केंद्रिका तथा सेट्रियोल अनुपस्थित होतेे हैं। • ये प्राय: जीवाणु और नील हरित शैवाल में पाए जाते हैं। • प्रोकैरियोटिक कोशिका भित्ति प्रोटीन तथा कार्बोहाइड्रेट की बनी हो है। • प्रोकैरियोटिक कोशिका में एंडोप्लास्मिक रेटिकुलम अनुपस्थित होता है। • कोशिका विभाजन अर्धसूत्री प्रकार का होता है। • प्रोकैरियोटिक कोशिका मेंं प्रकाश संश्लेषण में थाइलेेेेेकाइड होता है। • इसमें लिंग प्रजनन नहीं पाया जाता है। • यूकैरियोटिक कोशिका में डीएनए एकल सूत्र मेंं होता है। |
• यूकैरियोटिक कोशिका अधिक विकसित होती है। • यूकैरियोटिक कोशिका में माइटोकॉन्ड्रिया, लवक तथा न्यूकियोल्स होते हैं। • राइबोसोम 80S अवसाद गुणांक केेे होते हैं। • केंद्रक झिल्ली, गोल्जीकाय, लाइसोसोम केंद्रिका तथा सेट्रियोल उपस्थित होतेे हैं। • ये सभी जंतुओं और पौधों में पाए जाते हैं। • यूकैरियोटिक कोशिका भित्ति सेलुलोज की बन होती है। • यूकैरियोटिक कोशिका एंडोप्लास्मिक रेटिकुलम उपस्थित होता है। • कोशिका विभाजन अर्धसूत्री या समसूत्री प्रकार का होता है। • यूकैरियोटिक कोशिका में प्रकाश संश्लेषण क्लोरोप्लास्ट में होता है। • इसमेंं लिंग प्रजनन पाया जाता हैै। प्रोकैरियोटिक कोशिका में डीएनए पूर्ण विकसित एवंं दोहरे सूत्र के रूप में होता है। |
कोशिका के कार्य
कोशिका भित्ति (Cell Wall)
कोशिका झिल्ली (Cell Membrane)
कोशिका के सभी अवयय एक पतली झिल्ली के द्वारा गिरे रहते हैं, इस जिले को कोशिका झिल्ली कहते हैं यह अर्धपारगम्य झिल्ली होती है। इसका मुख्य कार्य कोशिका के अंदर जाने वाले एवं अंदर से बाहर आने वाले पदार्थों का निर्धारण करना है। कोशिका झिल्ली किसकी बनी होती है। यह लिपिड घटक फास्फोग्लिसराइड के बने होते हैं। बाद में जैव रासायनिक अनुसंधान उसे यह स्पष्ट हो गया कि कोशिका झिल्ली में प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट पाया जाता है।
तरककाय (Centrosome)
तरककाय की खोज बोबेरी ने की थी यह केवल जंतु कोशिकाओं में पाया जाता है। तरककाय के अंदर एक या दो कन जैसी रचना होती है, जिसे सेंट्रियोल कहते हैं। इसका कार्य समसूत्री विभाजन में ध्रुव का निर्माण करना है।
राइबोसोम (Ribosome)
सर्वप्रथम रॉबिंसन एवं ब्राउन ने 1953 ई. में पादप कोशिका में तथा जी. ई. पैलेड ने 1953 ई. में जंतु कोशिका में राइबोसोम को देखा और 1998 ई. में रॉबर्ट ने इसका नामकरण किया यह राइबोन्यूक्लिक एसिड नामक प्रोटीन की बनी होती है। यह प्रोटीन संश्लेषण के लिए उपयुक्त स्थान प्रदान करती है अर्थात यह प्रोटीन का उत्पादन स्थल है। इसे 'प्रोटीन की फैक्ट्री' भी कहा जाता है। राइबोसोम केवल कोशिका द्रव्य में ही नहीं, बल्कि हरित लवक सूत्र कनिका एवं खुदरी अंत प्रद्रव्य जालिका में भी मिलते हैं। यूकैरियोटिक राइबोसोम 80S प्रोकैरियोटिक व राइबोसोम 70S प्रकार के होते हैं। यहां पर 'S' (स्वेडवर्गस इकाई) अवसादन गुणांक को प्रदर्शित करता है। यह अपरोक्ष रूप से आकार व घनत्व को व्यक्त करने का कार्य करता है।
लाइसोसोम (Lysosome)
लाइसोसोम की खोज दी दुबे नामक वैज्ञानिक ने की थी यह सूक्ष्म गोल इकहरी झिल्ली से घिरी थैली जैसी रचना होती है, इसका निर्माण संवेष्टन विधि द्वारा गोल्जिकाय में होती है। लाइसोसोम में सभी प्रकार के जल अपघटकिय एंजाइम जैसे हाइड्रोलेलेज, लाइपेज, प्रोटओजेज व कार्बोहाइड्रेटजेज मिलते हैं, जो अम्लीय परिस्थितियों में सर्वाधिक सक्रिय होते हैं। एंजाइम कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, लिपिड, न्यूक्लिक अम्ल आदि के पाचन का कार्य करता है। लाइसोसोम को कोशिका की आत्मघाती थैली भी कहा जाता है।
माइटोकॉन्ड्रिया (Mitochondria)
माइटोकॉन्ड्रिया की खोज ऑल्टमैन ने 1886 ई. में की थी। बेंडा का नामाकरण माइटोकॉन्ड्रिया दिया। यह कोशिका का श्वसन का कार्य करता है। कोशिका में इसकी संख्या निश्चित नहीं होती है। उर्जा युक्त कार्बनिक पदार्थों का ऑक्सीकरण माइट्रोकांड्रिया में होता है जिससे काफी मात्रा में ऊर्जा प्राप्त होती है, इसीलिए माइटोकॉन्ड्रिया को कोशिका का पावर हाउस (Powerhouse of Cell) कहते हैं। माइटोकॉन्ड्रिया को कोशिका का इंजन भी कहते हैं। माइटोकॉन्ड्रिया को यूकैरियोटिक कोशिका के भीतर प्रोकैरियोटिक कोशिका में माना जाता है। माइटोकॉन्ड्रिया के अधात्री में एकल वृत्ताकार डीएनए अणु कुछ आरएनए अणु राइबोसोमस तथा प्रोटीन संश्लेषण के लिए आवश्यक घटक मिलते हैं। माइटोकॉन्ड्रिया विखंडन द्वारा विभाजित होता है।
गोल्जिकाय (Golgi body)
गोल्जिकाय की खोज कैमिली गोल्जी (इटली) नामक वैज्ञानिक ने की थी। यह सूक्ष्म में नलिकाओं के समूह एवं थैलियों का बना होता है। गॉल्जी कांपलेक्स में कोशिका द्वारा संश्लेषित प्रोटीन व अन्य पदार्थों की पुटिकाओ के रूप में पैकिंग की जाती है। ये पुटिकाए के रूप में गंतव्य स्थान पर उस पदार्थ को पहुंचा देती है। यदि कोई पदार्थ कोशिका से बाहर स्रावित होता है तो उस पदार्थ वाली पूटिकाए उसे कोशिका झिल्ली के माध्यम से बाहर निकलवा देती है। इस प्रकार गॉलजीकाय को एक हम कोशिका के अणुओं का यातायात प्रबंधक भी कहते हैं। यह कोशिका भित्ति एवं लाइसोसोम का निर्माण करने का कार्य भी करते हैं। गोलजी कांपलेक्स में साधारण शर्करा से कार्बोहाइड्रेट का संश्लेषण होता है, जो राइबोसोम में निर्मित प्रोटीन से मिलकर ग्लाइकोप्रोटीन बनाने का कार्य करता है। गोलजीकाय ग्लाइकोलिपिड का भी निर्माण करता है।
केंद्रक (Nucleus)
केंद्रक की खोज रॉबर्ट ब्राउन नामक वैज्ञानिक ने की यह कोशिका का सबसे प्रमुख अंग होता है। यह कोशिका के प्रबंधन के समान कार्य करता है। केंद्रक द्रव्य में धागेनुमा जाल के रूप में बिखरा दिखलाई पड़ता है जिसे क्रोमोटिन कहते हैं। क्रोमोटिन नाम फ्लेमिंग ने दिया। यह प्रोटीन हिस्टोन एवं डीएनए का बना होता है। कोशिका विभाजन के समय क्रोमेटिंन सिकुड़ कर अनेक मोटे व छोटे धागे के रूप में संगठित हो जाते हैं, इन धागों को गुणसूत्र कहते हैं। प्रत्येक जाति के जीव धारियों में सभी कोशिकाओं के केंद्रक में गुणसूत्र की संख्या निश्चित होती है जैसे− मानव में 23 जोड़ा, चिंपांजी में 24 जोड़ा, बंदर में 21 जोड़ा
लवक (Plastid)
लवक केवल पादप कोशिका में पाए जाते हैं यह तीन प्रकार के होते हैं :−
- हरित लवक (Chloroplast)
- अवर्णी लवक (Chromoplast)
- वर्णी लवक (Chloroplast)
कोशिका विभाजन (Cell Division)
- असुत्री विभाजन (Amitosis)
- समसूत्री विभाजन (Mitosis)
- अर्धसूत्री विभाजन (Meiosis)
असूत्री विभाजन (Amitosis)
समसूत्री विभाजन (Mitosis)
अर्धसूत्री विभाजन (Meiosis)
समसूत्री एवं अर्धसूत्री विभाजन में अंतर
समसूत्री विभाजन | अर्धसूत्री विभाजन |
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• समसूत्री विभाजन का कायिक कोशिका में होता है। • समसूत्री विभाजन में कम से कम समय लगता है। • संततिि कोशिका में जनक जैसी ही गुणसूत्रर होने अनुवांशिक विविधता नहीं होती। • इसमें गुणसूत्रों केेे अनुवांशिक पदार्थ में आदान-प्रदान नहीं होता है। • समसूत्री विभाजन प्रोफेज अवस्था से छोटी होती है। |
• अर्धसूत्री विभाजन जनन कोशिकाओं में होता है। • अर्धसूत्री विभाजन में अधिक समय लगता है। • संततििि विभाजन में एक कोशिका से चार कोशिका का निर्माण होता है। • इस गुणसूत्रों के बीच अनुवांशिक पदार्थों का आदान-प्रदान होता है। • अर्धसूत्री विभाजन प्रोफेज अवस्थाा से लंबी होती हैं। |
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